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कॉल सेंटर
कॉल सेंटर
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2018 |
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 11997
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आईएसबीएन :9789387462625 |
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
दिलीप पाण्डेय और चंचल शर्मा की कहानियाँ हिंदी कहानियों में कुछ नए ढंग का हस्तक्षेप करती हैं। यहाँ बहुत-सी कहानियाँ हैं जिनका मैं जिक्र करना चाहता हूँ, लेकिन दो-तीन कहानियाँ तो अद्भुत हैं। आमतौर पर इस संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ दो-ढाई पेज से ज्यादा की नहीं हैं और सबका अपना प्रभाव है। कई कहानियाँ तो इतने नए अनुभव लिये हुए हैं कि हिंदी कहानी में दुर्लभ हैं। आप ‘ढेढ़-मेढ़े रास्ते’ पढ़िए। आपको लगेगा कि आप एक नए महाभारत से जूझ रहे हैं जहाँ से स्त्री-स्वाभिमान की एक नई दुनिया खुलती है। पारंपरिक स्त्री-विमर्श से अलग यहाँ एक नए तरह का स्त्री-विमर्श है। चौसर पर यहाँ भी स्त्री है लेकिन अबकी स्त्री अपनी देह का फैसला खुद करती है। इसी के उलट ‘कॉल सेंटर’ स्त्री-स्वाधीनता के दुरुपयोग की अनोखी कथा है जो बहुत सीधे-सपाट लहजे में लिखी गई है। इस संग्रह की विशेषता यह है कि यहाँ कहानियों में विविधता बहुत है। यहाँ आप अल्ट्रा मॉड समाज की विसंगतियों की कथा पाएँगे तो बिल्कुल निचले तबके के अनोखे अनुभव भी, जो बिना यथार्थ अनुभव के संभव नहीं हैं। जैसे एक कहानी है-‘कच्चे-पक्के आशियाने’। यह कहानी गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले बच्चों की कहानी है जहाँ एक लड़की सिर्फ जीने के लिए अपनी देह का सौदा करती है। इसका अंत तो अद्भुत है जब देह बेचने वाली लड़की उस पर आरोप लगाने वाले संभ्रांत मेहता से उनकी पत्नी के सामने कहती है कि मेहता साहब, आपके पाँच सौ रुपये मुझ पर बाकी हैं, आपकी बीवी को दे दूँगी। कहानी यहाँ संभ्रांत समाज के पाखंड पर एक करारा तमाचा बन जाती है। कुल मिलाकर दिलीप पांडे और चंचल शर्मा की ये कहानियाँ इसलिए भी पढ़ी जानी चाहियें कि इन्होंने हिंदी कथा को कुछ नए और अनूठे अनुभव दिए हैं।
- शशिभूषण द्विवेदी
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